रिपोर्टर राजकुमार गुप्ता
महराजगंज जितिया व्रत, जो विशेष रूप से माताओं द्वारा संतान के कल्याण और लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है, का महत्व भारतीय संस्कृति में गहरा है। यह व्रत हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 25 सितंबर 2024 को है, और माताएं इस दिन निर्जला रहकर भगवान जीमूतवाहन की आराधना करती हैं।
जीमूतवाहन का महत्व
जीमूतवाहन भगवान को बच्चों की सुरक्षा और दीर्घ आयु का देवता माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान जीमूतवाहन ने एक काले हिरण को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की थी, जिससे उनकी करुणा और माता-पिता के प्रति प्रेम का प्रतीक बन गए। इस दिन माताएं सच्चे मन से उनकी पूजा करती हैं, जिससे उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा और खुशहाली का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
व्रत का विधि-विधान
जितिया व्रत का पालन करते समय माताएं निर्जला व्रत रखती हैं। वे पूरे दिन किसी भी प्रकार का जल या भोजन ग्रहण नहीं करतीं। इस दिन विशेष रूप से जीमूतवाहन भगवान की पूजा की जाती है, जिसमें विशेष प्रसाद और फल का भोग अर्पित किया जाता है। पूजा के समय, माताएं अपने बच्चों के लिए प्रार्थना करती हैं, और उन्हें दीर्घायु और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
इस दिन की पूजा विधि में सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना होता है। फिर घर के मंदिर में जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित कर, उन्हें फूल, दीप, और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद, माता अपने संतान के स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के लिए मन से प्रार्थना करती हैं।
संतान प्राप्ति का साधन
यह व्रत केवल संतान की लंबी उम्र के लिए नहीं, बल्कि संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। बहुत सी महिलाएं, जो संतान सुख से वंचित हैं, इस व्रत को संतान प्राप्ति के उद्देश्य से करती हैं। माना जाता है कि भगवान जीमूतवाहन की कृपा से महिलाएं अपने मन की इच्छा पूरी कर सकती हैं।
पारण का समय
जितिया व्रत का पारण अगली सुबह, यानी 26 सितंबर को, सूर्योदय के बाद करना होता है। इस दिन माताएं विशेष प्रसाद तैयार करती हैं और परिवार के सभी सदस्यों के साथ इसे साझा करती हैं। पारण के समय, जो भी संतान के लिए प्रार्थनाएं की गई थीं, उन्हें दोहराया जाता है, जिससे कि आशीर्वाद की शक्ति और अधिक बढ़ जाए।
निष्कर्ष
जितिया व्रत न केवल माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक है, बल्कि यह उनके संतान के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। इस दिन का पालन करके माताएं अपने बच्चों के लिए सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हैं।
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